गणेशभावाञ्जलिः
सुरेन्द्रनाथ राय, संस्कृत प्रवक्ता
(आज शारदीय नवरात्र का प्रथम दिन है। योग/तंत्र
में प्रचलित परम्परा के अनुसार आज के दिन शैलपुत्री माँ पार्वती का ध्यान मूलाधार
चक्र में किया जाता। साथ ही किसी भी उपासना में सर्वप्रथम गुरुओं के गुरु
पार्वतीनन्दन गणपति की उपासना का विधान किया गया है। पार्वतीनन्दन गजानन का भी
निवास मूलाधार चक्र माना गया है। अतएव आज के इस मांगलिक अवसर पर मूलाधार-चक्र-वासी
गणपति को भावाञ्जलि अर्पित करते हुए इस ब्लॉग का शुभारम्भ किया जाता
है।)
प्रणौमि
प्रीतिमत्तया गणाधिपं प्रभुं सुरैः सुपूजितं सहस्रयुक्तिदं युजे।
उमासुतं
गुरोर्गुरुं नताननो नमे गजाननं शुभाननं सुबुद्धिदं
भजे।।1।।
शक्तिसम्पन्न
गणपति श्रीगणेश जी को मैं भक्तिभाव से प्रणाम करता हूँ। देवताओं से विधिवत पूजित
और अनेक युक्तियों के प्रदाता का ध्यान करता हूँ। नतमस्तक होकर मैं गुरुओं के गुरु
पार्वतीनन्दन का नमन करता हूँ और मंगलमूर्ति सुबुद्धिदाता गजानन की सेवा करता हूँ।
I praise the master and chief of the multitude due to his delightfulness.
I meditate on him who gives numerous and been much regarded by gods as the son
of tranquility and teacher of a teacher. I serve the good-faced one in all
horizontal directions.
कपित्थभक्षणं
तमेकदन्तभं गृणे विलीनविघ्नगुच्छकं शिवात्मजं शुभम्।
धिया
हृदा च चिन्तयन् सुसिद्धिदं दधे गजाननं शुभाननं सुबुद्धिदं भजे।।2।।
कपित्थ
फल खानेवाले, प्रभावान, एकदंत
विघ्नसमूह के विनाशक और मंगलरूप शिवनन्दन को मैं प्रणाम करता हूँ। सुन्दर
सिद्धियों के दाता मंगलमूर्ति, सुबुद्धि
के प्रदाता श्री गजानन का बुद्धिपूर्वक ध्यान करते हुए अपने हृदय में उन्हें धारण
करता हूँ और उनकी सेवा करता हूँ।
I praise the shining god with one task and eating wood apples. I fix
myself with the intellect and heart upon the son of Eternal God, prosperity
personified, providing a good success and whose presence makes obstacles
disappear. I serve the good-faced one in all horizontal directions.
प्रभुक्तजाम्बवं
च भीतिमाशनं नयं विनायकं वियच्छशांकभालकं विभुम्।
चलक्विभास्यकुण्डलं
शुभंकरं वृणे गजाननं शुभाननं सुबुद्धिदं भजे।।3।।
जामुन
का फल खानेवाले, भय के विनाशक, बुद्धिस्वरूप, चन्द्रमा
से सुशोभित विशाल ललाट वाले, शक्तिशाली, मूलाधार
चक्र के वासी, कानों में दोलायमान कुंडल, सदा
हितकारी विनायक का मैं वरण करता हूँ और मंगलमूर्ति सुबुद्धिदाता गजानन की सेवा
करता हूँ।
I choose the leader god, prudence personified, destroying fear, eating the
rose apple, having the moon on his broad forehead, always doing
welfare and who has abode in Muladhar Chakra, whose ear- ring on elephant head
is always shaking and thus creating a luster. I serve the good-faced one in all
horizontal directions.
अरालतुण्डमद्भुतं
त्रिनेत्रशोभितं वराभयं मुदाकरं प्रमोदकं लभे।
जिहे
जगल्लघुक्रमप्रवन्द्यतां गतं गजाननं शुभाननं सुबुद्धिदं भजे।।4।।
वक्रतुण्ड, तीन
नेत्रों से सुशोभित, अभयवर दाता, आनन्ददाता
अद्भुत स्वरूपधारी को मैं जानता हूँ। अल्पतम समय में विश्व की परिक्रमा करने के
लिए प्रसिद्ध पार्वतीनन्दन की शरण लेता हूँ और मंगलमूर्ति सुबुद्धिदाता गजानन की
सेवा करता हूँ।
I perceive the wonderful god adorned with three eyes and curved trunk,
producing pleasure with blessing and removing fright and thus yielding a lot of
joy. I go to one who has been able to get the most reverence on account of
measuring the world short-cut. I serve the good-faced one in all horizontal
directions.
मनोद्विरेफमादितो
ध्रिये श्रियः सचौ सुवर्णलेखवच्च सूरकोटिभां भरे।
निधानबन्धुरे
वितीर्णसर्वसम्पदि गजाननं शुभाननं सुबुद्धिदं भजे।।5।।
लक्ष्मी
के सहचर, स्वर्णलेख की भाँति
करोड़ों सूर्यों की प्रभा से परिपूर्ण सभी प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करनेवाले, सुबुद्धि
प्रदाता मंगलमूर्ति गजानन में आदिकाल से मेरा मन रूपी भौंरा रमा है और मैं उन्हीं
की सेवा करता हूँ।
I live with the mind like a large black bee and as pure as the golden
document, engaged in the friend to the goddess of wealth, who
has the weight of splendor of many of the sun, distributing the whole riches. I serve the good-faced one in all horizontal directions.